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भोजपुरी कविता _ सखी आए नाही साजन। जाड़ गइल अब आइल बसंत हिय पीर उठे सखी आए नाही साजन। सजल धरती हरी घास उगल परती खिले कचनार सुने ना मनुहार अभागन। ...